Tuesday, January 21, 2020

जलवायु परिवर्तन: संकट से निपटने में इच्छाशक्ति रोड़ा

ग्लोबल वॉर्मिंग और इसका धरती की जलवायु पर पड़ रहा बुरा असर इस वक़्त दुनिया के सामने सबसे बड़ी चुनौती है. समंदर का जल स्तर बढ़ रहा है. कुदरती संसाधन घट रहे हैं. इसकी वजह से संघर्ष बढ़ रहे हैं. ग़रीबी बढ़ रही है और महिलाओं-पुरुषों के बीच फ़ासला भी बढ़ रहा है.

इस चुनौती से कैसे निपट सकते हैं, इस बारे में बहुत कुछ कहा-सुना और लिखा जा चुका है. प्रदूषण कम करना है. कार्बन उत्सर्जन कम करना है. अपनी जीवन शैली बदलनी है. क़ारोबार का तरीक़ा बदलना है. लेकिन, इनके बारे में फ़ैसला लेने वाले सब जान बूझकर भी ज़रूरी क़दम या तो उठा नहीं रहे हैं. या उनकी रफ़्तार बेहद धीमी है. फिर चाहे वो दुनिया के नेता हों या आम आदमी.

फिलहाल, इसी बात पर सहमति नहीं है कि इस चुनौती से निपटने के लिए कौन सी तकनीकें आज़मायी जानी चाहिए. ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन कैसे कम किया जाना चाहिए?

वयस्क, समझदार और उम्रदराज़ लोगों के मुक़ाबले दुनिया के युवा जलवायु परिवर्तन की चुनौती को न सिर्फ़ बेहतर ढंग से समझ रहे हैं, बल्कि उनसे निपटने के लिए युवाओं के प्रयास भी ज़ोरदार हैं.

नोबेल पुरस्कार के लिए नामांकित, किशोरी ग्रेटा थनबर्ग ने कहा था, 'जलवायु परिवर्तन के संकट का समाधान हो चुका है. हमारे सामने तथ्य भी हैं और समाधान भी. हमें बस ये करना है कि इस चुनौती के प्रति जागरूक हों और ख़ुद में बदलाव लाएं.'

ग्रेटा थनबर्ग जैसे युवा आज दुनिया भर में जलवायु परिवर्तन को लेकर आवाज़ उठा रहे हैं. पूरी दुनिया में स्कूली छात्र #FridaysForFuture के नाम से जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए फौरन ठोस क़दम उठाने की मांग कर रहे हैं. 15 मार्च 2019 को दुनिया के 123 देशों में 2052 जगहों पर क़रीब 15 लाख छात्रों ने एकजुट होकर इसके लिए आवाज़ बुलंद की थी.

युवा अपने लिए बेहतर भविष्य की मांग कर रहे हैं. लेकिन, फ़ैसला लेने वाले हमारे नीति-निर्माता बेवजह की बहसों में उलझे हुए हैं. किस तकनीक को अपनाया जाए? कौन सा देश कितना बोझ उठाएगा? किस देश को अपना कार्बन उत्सर्जन सबसे ज़्यादा कम करना होगा?

ऐसे हालात में ये कहा जा सकता है कि जलवायु परिवर्तन के संकट से निपटने की राह में तकनीक नहीं, इच्छाशक्ति का रोड़ा है.

प्रोजेक्ट ड्रॉडाउन नामक हमारी रिसर्च से ये साफ़ हो गया है कि आज बिजली बनाने, परिवहन, इमारतें बनाने, उद्योग, खान-पान की व्यवस्था, ज़मीन के इस्तेमाल और ज़रूरत से ज़्यादा उपभोग रोकने के लिए बेहतर तकनीकें उपलब्ध हैं. ये तकनीक सरकारें अपना सकती हैं. कारोबारी आज़मा सकते हैं और आम लोग भी अपनी ज़िंदगी में इन्हें शामिल कर सकते हैं.

आज विश्व की अर्थव्यवस्था शोषण आधारित विकास के मॉडल पर चलती है, जहां इंसान से लेकर क़ुदरती संसाधनों तक का बेपनाह शोषण किया जाता है. इस का नतीजा ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन के तौर पर सामने आता है. जीवाश्म ईंधन के दुरुपयोग, ज़मीन के दुरुपयोग और हर चीज़ के ज़रूरत से ज़्यादा इस्तेमाल से जलवायु परिवर्तन की चुनौती बढ़ती जाती है.

आज सौर ऊर्जा, पवन ऊर्जा और ज़मीन के अंदर बंद गर्मी से बिजली पैदा करके हम साफ़ तरीक़ों से ज़रूरत भर की बिजली हासिल कर सकते हैं. ये इसलिए ज़रूरी है क्योंकि आज बिजली उत्पादन, इसके ट्रांसमिशन और स्टोरेज की वजह से दुनिया का कुल 25 फ़ीसद कार्बन उत्सर्जन होता है.

बिजली की खपत घटाने के लिए हाइब्रिड कारें हैं. हम सार्वजनिक वाहनों का ज़्यादा इस्तेमाल करके और कभी-कभार पैदल चलने को तरज़ीह देकर, अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में बिजली का इस्तेमाल कम कर सकते हैं.

इसी तरह खाने की बर्बादी को रोककर हम, खाद्य पदार्थ पैदा करने और उन्हें पकाने, पैकिंग और फिर यहां से वहां ले जाने में ख़र्च होने वाले ईंधन को कम कर सकते हैं. ये हर इंसान कर सकता है और जलवायु परिवर्तन से निपटने में योगदान दे सकता है.

इसी तरह जंगलों की बेतहाशा कटाई की जगह दूसरी तकनीकों का इस्तेमाल करना भी एक विकल्प है, जिसे हम आज़मा सकते हैं. खेती और पशुपालन की नई तकनीकें आज़मा कर हम इन की वजह से होने वाले कार्बन उत्सर्जन को घटा सकते हैं.

इन सभी बदलावों के लिए ज़रूरी है कि धरती का हर इंसान अपने स्तर पर कार्बन उत्सर्जन घटाने का प्रण ले. अपने रहन-सहन और काम करने के तरीक़े में बदलाव लाए. तभी हम जंगलों को कटने से बचा सकते हैं. और धरती का पारा चढ़ने से रोक सकते हैं.

हमें इन क़दमों को तेज़ रफ़्तार से बढ़ाना होगा. आज का युवा तो ये बातें समझ रहा है. मगर, उम्र का काफ़ी हिस्सा गुज़ार रहे लोग, उन युवाओं के भविष्य की फ़िक्र नहीं कर रहे हैं.

ग्रेटा थनबर्ग की ही तरह लॉरेन हाउलैंड भी एक युवा हैं जो जलवायु परिवर्तन की चुनौती से निपटने की मुहिम ज़ोर-शोर से चला रही हैं. 23 बरस की लॉरेन अमरीकी मूल निवासी समुदाय से आती हैं और जिकारिला अपाचे नेशन से ताल्लुक़ रखती हैं.

उन्होंने इंटरनेशनल इंडीजीनस यूथ काउंसिल की स्थापना की है जिसे साल 2018 में रॉबर्ट एफ. कैनेडी ह्यूमन राइट्स अवार्ड मिला था. ये संस्था पर्यावरण से जुड़े मुद्दों पर काम करती है.

लॉरेन, दुनिया भर के मूल निवासियों की आवाज़ बन कर उभरी हैं. वो कहती हैं कि,'आज का युवा आपस में बेहतर ढंग से जुड़ा है. उसे इन चुनौतियों का अच्छे से अंदाज़ा है. उसे पता है कि धरती पर इंसान की मौजूदगी को इस से बड़ी चुनौती पहले नहीं मिली थी. हम इंसानियत को बचाने की लड़ाई लड़ रहे हैं. वरना इंसान विलुप्त हो जाएंगे. हम चाहते हैं की नीति नियंता भी अपनी सोच बदलें. हमें जलवायु परिवर्तन पर ऐसी नीतियां चाहिए, जो तुरंत परिवर्तन लाने में सक्षम हों. जिन्हें स्थानीय स्तर पर तमाम समुदाय लागू कर सकें.'

Monday, January 13, 2020

जेएनयू पहुंचने वाले दिन दीपिका की सर्च बढ़ी, लेकिन हफ्ते भर के ट्रेंड्स में 'छपाक' से आगे रही 'तानाजी'

सोशल मीडिया डेस्क. 7 जनवरी को दीपिका पादुकोण जेएनयू कैंपस में चल रहे प्रदर्शन में छात्रों का समर्थन करने पहुंची थीं। इसके बाद से ही वे और उनकी फिल्म छपाक सोशल मीडिया पर चर्चा में आ गए। कुछ यूजर्स ने इसे पब्लिसिटी स्टंट बताया, तो कुछ ने साहसी कदम। हालांकि बीते 7 दिनों के गूगल के आंकड़े बताते हैं कि दीपिका की छपाक के मुकाबले अजय की तानाजी को ही यूजर्स ने ज्यादा सर्च किया।

शुक्रवार को दोनों फिल्मों के रिलीज होने के बाद से तानाजी सर्चिंग में लगातार छपाक से आगे बनी हुई है। दीपिका की सर्चिंग सिर्फ 7 जनवरी की रात बढ़कर 47 पॉइंट पर पहुंची थी। इसके बाद उनकी और छपाक की सर्चिंग कम हो गई। दूसरी तरफ, तानाजी की सर्चिंग रविवार को 100 पॉइंट पर पहुंच गई। हमने गूगल ट्रेंड्स पर पिछले एक हफ्ते (7 से 13 जनवरी) के आंकड़े खंगाले और पता किया कि तानाजी, छपाक, दीपिका और अजय को लेकर यूजर्स ने गूगल से क्या पूछा।

जेएनयू में दीपिका के जाने के बाद से वे मीडिया में छाईं हुईं थीं, लेकिन सोशल मीडिया पर ज्यादा सर्चिंग उनकी फिल्म छपाक नहीं बल्कि तानाजी की हो रही थी। बीते 7 दिनों में तानाजी को 30 पॉइंट, छपाक को 22 पॉइंट, दीपिका पादुकोण को 17 पॉइंट और अजय देवगन को 15 पॉइंट सर्च किया गया। तानाजी को 11 जनवरी को 89 पॉइंट, 12 जनवरी को 100 पॉइंट और 13 जनवरी को 83 पॉइंट सर्च किया गया। वहीं, छपाक की अधिकतम सर्चिंग 10 जनवरी को 85 पॉइंट तक पहुंची।

यूजर्स की सबसे ज्यादा क्वेरीज तानाजी का कलेक्शन जानने को लेकर (100 पॉइंट) आईं। इसके बाद तानाजी रिव्यू, छपाक, तानाजी मूवी, बॉक्स ऑफिस, टुकड़े-टुकड़े गैंग, जेएनयू प्रोटेस्ट, दीपिका पादुकोण, जेएनयू जैसे कीवर्ड्स से सर्चिंग की गई।

सोशल मीडिया डेस्क. 7 जनवरी को दीपिका पादुकोण जेएनयू कैंपस में चल रहे प्रदर्शन में छात्रों का समर्थन करने पहुंची थीं। इसके बाद से ही वे और उनकी फिल्म छपाक सोशल मीडिया पर चर्चा में आ गए। कुछ यूजर्स ने इसे पब्लिसिटी स्टंट बताया, तो कुछ ने साहसी कदम। हालांकि बीते 7 दिनों के गूगल के आंकड़े बताते हैं कि दीपिका की छपाक के मुकाबले अजय की तानाजी को ही यूजर्स ने ज्यादा सर्च किया।

शुक्रवार को दोनों फिल्मों के रिलीज होने के बाद से तानाजी सर्चिंग में लगातार छपाक से आगे बनी हुई है। दीपिका की सर्चिंग सिर्फ 7 जनवरी की रात बढ़कर 47 पॉइंट पर पहुंची थी। इसके बाद उनकी और छपाक की सर्चिंग कम हो गई। दूसरी तरफ, तानाजी की सर्चिंग रविवार को 100 पॉइंट पर पहुंच गई। हमने गूगल ट्रेंड्स पर पिछले एक हफ्ते (7 से 13 जनवरी) के आंकड़े खंगाले और पता किया कि तानाजी, छपाक, दीपिका और अजय को लेकर यूजर्स ने गूगल से क्या पूछा।

जेएनयू में दीपिका के जाने के बाद से वे मीडिया में छाईं हुईं थीं, लेकिन सोशल मीडिया पर ज्यादा सर्चिंग उनकी फिल्म छपाक नहीं बल्कि तानाजी की हो रही थी। बीते 7 दिनों में तानाजी को 30 पॉइंट, छपाक को 22 पॉइंट, दीपिका पादुकोण को 17 पॉइंट और अजय देवगन को 15 पॉइंट सर्च किया गया। तानाजी को 11 जनवरी को 89 पॉइंट, 12 जनवरी को 100 पॉइंट और 13 जनवरी को 83 पॉइंट सर्च किया गया। वहीं, छपाक की अधिकतम सर्चिंग 10 जनवरी को 85 पॉइंट तक पहुंची।

यूजर्स की सबसे ज्यादा क्वेरीज तानाजी का कलेक्शन जानने को लेकर (100 पॉइंट) आईं। इसके बाद तानाजी रिव्यू, छपाक, तानाजी मूवी, बॉक्स ऑफिस, टुकड़े-टुकड़े गैंग, जेएनयू प्रोटेस्ट, दीपिका पादुकोण, जेएनयू जैसे कीवर्ड्स से सर्चिंग की गई।

सोशल मीडिया डेस्क. 7 जनवरी को दीपिका पादुकोण जेएनयू कैंपस में चल रहे प्रदर्शन में छात्रों का समर्थन करने पहुंची थीं। इसके बाद से ही वे और उनकी फिल्म छपाक सोशल मीडिया पर चर्चा में आ गए। कुछ यूजर्स ने इसे पब्लिसिटी स्टंट बताया, तो कुछ ने साहसी कदम। हालांकि बीते 7 दिनों के गूगल के आंकड़े बताते हैं कि दीपिका की छपाक के मुकाबले अजय की तानाजी को ही यूजर्स ने ज्यादा सर्च किया।

शुक्रवार को दोनों फिल्मों के रिलीज होने के बाद से तानाजी सर्चिंग में लगातार छपाक से आगे बनी हुई है। दीपिका की सर्चिंग सिर्फ 7 जनवरी की रात बढ़कर 47 पॉइंट पर पहुंची थी। इसके बाद उनकी और छपाक की सर्चिंग कम हो गई। दूसरी तरफ, तानाजी की सर्चिंग रविवार को 100 पॉइंट पर पहुंच गई। हमने गूगल ट्रेंड्स पर पिछले एक हफ्ते (7 से 13 जनवरी) के आंकड़े खंगाले और पता किया कि तानाजी, छपाक, दीपिका और अजय को लेकर यूजर्स ने गूगल से क्या पूछा।

जेएनयू में दीपिका के जाने के बाद से वे मीडिया में छाईं हुईं थीं, लेकिन सोशल मीडिया पर ज्यादा सर्चिंग उनकी फिल्म छपाक नहीं बल्कि तानाजी की हो रही थी। बीते 7 दिनों में तानाजी को 30 पॉइंट, छपाक को 22 पॉइंट, दीपिका पादुकोण को 17 पॉइंट और अजय देवगन को 15 पॉइंट सर्च किया गया। तानाजी को 11 जनवरी को 89 पॉइंट, 12 जनवरी को 100 पॉइंट और 13 जनवरी को 83 पॉइंट सर्च किया गया। वहीं, छपाक की अधिकतम सर्चिंग 10 जनवरी को 85 पॉइंट तक पहुंची।

यूजर्स की सबसे ज्यादा क्वेरीज तानाजी का कलेक्शन जानने को लेकर (100 पॉइंट) आईं। इसके बाद तानाजी रिव्यू, छपाक, तानाजी मूवी, बॉक्स ऑफिस, टुकड़े-टुकड़े गैंग, जेएनयू प्रोटेस्ट, दीपिका पादुकोण, जेएनयू जैसे कीवर्ड्स से सर्चिंग की गई।